पाइका विद्रोह का इतिहास History of the Paika Rebellion in hindi
हाल ही में ही पाइका विद्रोह के 200 साल पुरे होने के उपलक्ष में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ओडिशा में पाइका विद्रोह की स्मारक की आधार शिला रखी हे।
केंद्र सरकार 1857 के विद्रोह को बदल ने की तैयारी कर रही हे। अब 1857 से पहले हुआ 1817 में हुआ पाइका विद्रोह को पहला विद्रोह माना जाएंगे इस सन्दर्भ में केन्दीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा हे की 1817 के पाइका विद्रोह को अगले सत्र से भारत का इतिहास का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में माना जाएंगे।
पाइका विद्रोह का इतिहास
पाइका विद्रोह की कहानी 19 वी सदी की कहानी हे दरअसल 1803 में जब ईस्टइंडिअ कंपनी ने मराठाओ को हराया कर ओडिशा पर कब्ज़ा किया तो इस दौरान अंग्रेजो ने खोर्दा के तत्कालीन राजा मुकुंददेव २ से प्रशिद्ध जगन्नाथ मंदिर का प्रबंधन छीन लिया।
इस दौरान राजा मुकुंददं २ नाबालिक थे. ऐसे में राज्य का पूरा कामकाज देखने की जिम्मेदारी जाई राजगुरु पर थी।
अंग्रेजो की इस हरकत के बाद उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग छेड़ दी। हलाकि उनके इस कदम कबाद अंग्रेजो ने उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी।
जायी राजगुरु को फांसी दिए जाने के बाद लोगो में काफी आक्रोश देखने को मिला। इसके आलावा पाइका विद्रोह के कई सामाजिक, राजनैतिक , और आर्थिक कारण भी मौजूद थे।
इनमें अंग्रेजो ने विजय के बाद पाइको की वंशानुगत लगान मुक्त जमींन हड़प ली और उन्हें उनकी भूमि से वंचित कर दिया
जबरन वसूली और उत्पीड़न का दौरे भी यही से सुरु हो गया था। इससे न केवल किसान बल्कि जमींदार तक भी प्रभावित होने लगे।
यही नहीं कंपनी ने कौड़ी मुंद्रा व्यवस्था तक ख़त्म कर दिया जो की ओडिश में प्रचलन में थी। ऐसे में टैक्स चांदी में चुकाना अनिवार्य हो गया था।
पाइका विद्रोह की कहानी 19 वी सदी की कहानी हे दरअसल 1803 में जब ईस्टइंडिअ कंपनी ने मराठाओ को हराया कर ओडिशा पर कब्ज़ा किया तो इस दौरान अंग्रेजो ने खोर्दा के तत्कालीन राजा मुकुंददेव २ से प्रशिद्ध जगन्नाथ मंदिर का प्रबंधन छीन लिया।
इस दौरान राजा मुकुंददं २ नाबालिक थे. ऐसे में राज्य का पूरा कामकाज देखने की जिम्मेदारी जाई राजगुरु पर थी।
अंग्रेजो की इस हरकत के बाद उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग छेड़ दी। हलाकि उनके इस कदम कबाद अंग्रेजो ने उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी।
जायी राजगुरु को फांसी दिए जाने के बाद लोगो में काफी आक्रोश देखने को मिला। इसके आलावा पाइका विद्रोह के कई सामाजिक, राजनैतिक , और आर्थिक कारण भी मौजूद थे।
इनमें अंग्रेजो ने विजय के बाद पाइको की वंशानुगत लगान मुक्त जमींन हड़प ली और उन्हें उनकी भूमि से वंचित कर दिया
जबरन वसूली और उत्पीड़न का दौरे भी यही से सुरु हो गया था। इससे न केवल किसान बल्कि जमींदार तक भी प्रभावित होने लगे।
यही नहीं कंपनी ने कौड़ी मुंद्रा व्यवस्था तक ख़त्म कर दिया जो की ओडिश में प्रचलन में थी। ऐसे में टैक्स चांदी में चुकाना अनिवार्य हो गया था।
बक्शी जगबधु ने इस आक्रोश को आंदोलम में तप्दील कर दिया। 1817 में ओड़ीशा के खुर्दा में गोरिल्ला युद्ध के अंदाज में बक्शी के सैनिको ने अंग्रेजो पर हमला किया जिसको इतिहास में पाइका विद्रोह कहा जाता हे।
इस दौरान पाइका विद्रोहियों ने ब्रिटिश राज के प्रतिको पर हमला करते हुए पुलिस थानों, प्रशासकीय कार्यालयों और राजकोष में आग लगा दी।
इसके आलावा पाइका विद्रोहियों को कनिका, कुजंग, नयागढ़ और घुमसुर के राजाओ, जमींदारों, ग्राम प्रधानों और आम किसानो का भी सहयोग मिला।
हलाकि अंग्रेजो ने इस विद्रोह पर काबू पा लिया और इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला
ब्रिटिश हुकूमत ने इसके लिए कई लोगो को जेल में दाल दिया और कई लोगो को अपनी जान तक गवानी पड़ी
कई विद्रोहियों ने 1819 तक गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन अंत में उन्हें पकड़ कर मार दिया गया।
बक्शी जगबंधु को भी 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई
ओडिशा लोगो का कहना हे की दुर्भाग्य से इस विद्रोह को राष्टीय स्तर पर वैसा महत्व नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए
यह भी पढ़े : deval devi देवल देवी
इस दौरान पाइका विद्रोहियों ने ब्रिटिश राज के प्रतिको पर हमला करते हुए पुलिस थानों, प्रशासकीय कार्यालयों और राजकोष में आग लगा दी।
इसके आलावा पाइका विद्रोहियों को कनिका, कुजंग, नयागढ़ और घुमसुर के राजाओ, जमींदारों, ग्राम प्रधानों और आम किसानो का भी सहयोग मिला।
हलाकि अंग्रेजो ने इस विद्रोह पर काबू पा लिया और इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला
ब्रिटिश हुकूमत ने इसके लिए कई लोगो को जेल में दाल दिया और कई लोगो को अपनी जान तक गवानी पड़ी
कई विद्रोहियों ने 1819 तक गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन अंत में उन्हें पकड़ कर मार दिया गया।
बक्शी जगबंधु को भी 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई
ओडिशा लोगो का कहना हे की दुर्भाग्य से इस विद्रोह को राष्टीय स्तर पर वैसा महत्व नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए
यह भी पढ़े : deval devi देवल देवी
0 Comments:
Post a Comment