December 2019 ~ Mjgyaan

Tuesday, December 17, 2019

Pervez Musharraf Death Penalty

HISTORIC JUDGEMENT 


pervez musharraf


A three member bench of the special court, headed by peshawar high court chief justice waqar ahmad seth, handed musharraf, 76, death sentence in the long drawan high treason case against him for suspending the constitution and imposing emergency rule in 2007, a punishable offence for which he was indicted in 2014 

The special court's order came despite and earlier islamabad High Court (IHC) order stopping it form issuing the verdict

HIGH TREASON


High treason -1 [ (1)  Any person who abrogates or subverts or suspends or holds in abeyance, or attempts or conspires to abrogate or subvert or suspend or hold in abeyance, the constitution by use of force or show of force or by any other unconstitutional means shall be quilty of high treason.]

Article 6 of the constitution 


WHAT MUSHARAF DID


A state of emergency was declared by president of pakistan pervez musharraf 3 november 2007 and lasted until the 15 december 2007 during which the constitution of pakistan was suspended.

when the state of emergency was declared, musharrsf controversially held both position of president and chief of army staff.

chief justice lftikhar muhammad chaudhry reactecd promptly to the emergency declaration, convening a seven member bench which issued an interim order against this action.
he also directed the armed force of pakistan not to obey any illegal orders.

subsequently, the 111th brigade of the pakistan army entered the supreme court building and removed chaudhry and several other judge from the supreme court and arrested them. 

WHY DID MUSHARAF DO THIS?


General musharraf said he decided to act in response to a rise in extremism and what he called the paralysis of government by judicial interference.

"I fear that if timely action is not taken, then god forbid there is a threat to pakistan's sovereignty." he said in a midnigh televised address, after purging the supreme court and rounding up lawyers opposed to him.

"I cannot allow this county to commit suicide."

Because of US pressure pakistan had started action against pakistan taliban.

As the pak military took more steps the pakistan taliban responded with a string of terror attacks 


SIEGE OF LAL MASJID


A confrontation in july 2007 between islamic fundamentalists and the government of pakistan, led by president pervez musharraf and prime minister shaukat aziz.

The focal points of the operation were the lal masjid ("Red Mosque") and the jamia hafsa madrasah complex in Iskamabad, Pakistan.

FAIL FORM POWER 


November 28, 2007: Musharraf retires form the military handing over the army charge to gen ashfaq parvez kayani. on november 29, Musharraf takes oath as a civillian president.

December 15, 2007: The emergency is lifted and the provisional constitutional order (PCO) is revoked and seeks constitutional amendments to validate the action taken during the 42 day long emergency period.

August 18, 2008: president musharraf resigns from office after nine years in power.



BACKLASH


March 2013: musharraf return to contest general election. A senior counsel refers to SC's ruling on Musharraf's actions during the imposition of emergency arguing that in overthrowing the constitution, Musharraf had committed the offence of high treason.

June 2013: The government hurrienly files a petition to try musharraf for treason under Article 6 of the constitution. it further sets up a special investigation team to probe the charges against the former president.

November 2013: Pakistan supreme court orders the formation of a three-judge special court to prosecute former military ruler pervez musharraf.

CONCLUSION


What has happened in pakistan is a welcome step and will be remembered  as a historical decision to curb the military influence in pakistan.




Thursday, December 12, 2019

Meesho से पैसे कैसे कमाए How to earn money with Meesho? Hindi

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Wednesday, December 11, 2019

पाइका विद्रोह का इतिहास History of the Paika Rebellion in hindi

हाल ही में ही पाइका विद्रोह के 200  साल पुरे होने के उपलक्ष में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ओडिशा में पाइका विद्रोह की स्मारक की आधार  शिला रखी हे।

केंद्र सरकार 1857 के विद्रोह को बदल ने की तैयारी कर रही हे।  अब 1857  से पहले हुआ 1817 में हुआ पाइका विद्रोह को पहला विद्रोह माना जाएंगे इस सन्दर्भ में केन्दीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा हे की 1817  के पाइका विद्रोह को अगले सत्र से भारत का इतिहास का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में माना जाएंगे।


पाइका विद्रोह का इतिहास

पाइका विद्रोह की कहानी 19 वी सदी की कहानी हे दरअसल  1803  में जब ईस्टइंडिअ कंपनी ने मराठाओ को हराया कर ओडिशा पर कब्ज़ा किया तो इस दौरान अंग्रेजो ने खोर्दा के तत्कालीन राजा मुकुंददेव २ से प्रशिद्ध जगन्नाथ मंदिर का प्रबंधन छीन लिया।

इस दौरान राजा मुकुंददं २ नाबालिक थे. ऐसे में राज्य का पूरा कामकाज देखने की जिम्मेदारी जाई राजगुरु पर थी।

अंग्रेजो की इस हरकत के बाद उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग छेड़  दी। हलाकि उनके इस कदम कबाद अंग्रेजो ने उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी।

जायी राजगुरु को फांसी दिए जाने के बाद लोगो में काफी आक्रोश देखने को मिला।  इसके आलावा पाइका विद्रोह के कई सामाजिक, राजनैतिक , और आर्थिक कारण  भी मौजूद थे।

इनमें अंग्रेजो ने विजय के बाद पाइको की वंशानुगत लगान  मुक्त जमींन  हड़प ली और उन्हें उनकी भूमि से वंचित कर दिया

जबरन वसूली और उत्पीड़न का दौरे भी यही से सुरु हो गया था। इससे न केवल किसान बल्कि जमींदार तक भी प्रभावित होने  लगे।

 यही नहीं कंपनी ने कौड़ी मुंद्रा व्यवस्था तक ख़त्म कर दिया जो की ओडिश में प्रचलन में थी।  ऐसे में टैक्स चांदी  में चुकाना अनिवार्य हो गया था।


बक्शी जगबधु  Bakshi Jagabandhu
बक्शी जगबधु  Bakshi Jagabandhu



बक्शी जगबधु ने इस आक्रोश को आंदोलम में तप्दील कर दिया। 1817  में ओड़ीशा के खुर्दा में गोरिल्ला युद्ध के  अंदाज में बक्शी के  सैनिको ने अंग्रेजो पर हमला किया जिसको इतिहास में पाइका विद्रोह कहा जाता हे। 

इस दौरान पाइका विद्रोहियों ने ब्रिटिश राज के प्रतिको पर हमला करते हुए पुलिस थानों, प्रशासकीय कार्यालयों और राजकोष में आग लगा दी।

इसके आलावा पाइका विद्रोहियों को कनिका, कुजंग, नयागढ़ और घुमसुर के राजाओ, जमींदारों, ग्राम प्रधानों और आम किसानो का भी सहयोग मिला।
हलाकि अंग्रेजो ने इस विद्रोह पर काबू पा लिया और इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला

ब्रिटिश हुकूमत ने इसके लिए कई लोगो को जेल में दाल दिया और कई लोगो को अपनी जान तक गवानी  पड़ी

कई विद्रोहियों ने 1819  तक गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन अंत में उन्हें पकड़ कर मार  दिया गया।

बक्शी जगबंधु को भी 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई

ओडिशा लोगो का कहना हे की दुर्भाग्य से इस विद्रोह को राष्टीय स्तर पर वैसा महत्व नहीं मिला जैसा  मिलना चाहिए

यह भी पढ़े :  deval devi देवल देवी

Monday, December 9, 2019

deval devi history in hindi देवल देवी deval devi in hindi

कर्णदेव २ (1296 - 1304)

ऐ बात वाघेला वंश अंतिम राजा कर्णदेव २ के बारे में हे जो रामदेव का पुत्र था.

जिसे इतिहास में  कर्णघेलो भी कहा जाता हे और देवलदेवी कर्णदेव २ कि पुत्री थी जिसके बारे में आज हम  बात करने वाले हे।

karndev 2 कर्णदेव २

कर्णदेव २

इसके समय में साल 1299  में अल्लाउदीन खलजी का सरदार उलुगखां और नुसरतख ने गुजरात पे आक्रमण  किये  थे  इस आक्रमण  का प्रमुख कारण  महामात्य माधव बना था . क्योकि राजा कर्णदेव  माधव की पत्नी पे मोहित हो गया था.

 इस लिए राजा कर्णदेव ने महामात्य माधव को कच्छ भेज दिया और माधव की पत्नी को लेने के लिए निकल गया।  लेकिन इस बात का पता चलते  ही माधव की पत्नी ने आत्महत्या की।

इस बात का पता माधव को लगा और वो  बदला लेने के लिए खलजी के पास गया और गुजरात को लूटनेका आमंत्रण दिया. खलजी ने पाटन , रूद्रमहालय, और सोमनाथ को लुटा।

इस चढ़ाई में कर्णदेव की राणी कमला देवी (kamaladevi (ex-wife of karna) को पकड़ लिया गया और दिल्ही भेज दिया गया और वह उसको  खलजी (कमला देवी अलाउद्दीन खिलजी)  के साथ शादी करवादी गई.

सुल्तान ने पाटन  के सरवरख़ान को नाजिम घोसित करके  गुजरात का वहीवट कार घोसित किया गया 
कर्णदेव ने फिरसे पाटन परत ले लिया

सुल्तान ने दूसरीबार जाहितम और पंचमणी को गुजरात पर आक्रमण के लिए भेजा और इसबार कर्णदेव ने हमेशा के लिए राज्य खो दिया (1304)

कर्णदेव आसरा लेने के लिए देवगिरि के यादव राजा राम चंद्र के पास गया. और वहा पे  बगलान में शक्ति स्थापित की कर्णदेव की पुत्री देवल देवी भी साथ में थी. 


deval devi देवलदेवी
 देवल देवी

रामचद्र ने  पुत्र सिंगन देव को  देवलदेवी के साथ विवाह करने की ईशा जाहिर की लेकिन कर्णदेव ने मना कर दिया।

सुल्तान के सरदार मालिक काफूर ने देवगिरि पे  आक्रमण किया लेकिन रास्ते में बगलान में रहते कर्णदेव के साथ युद्ध हुआ इस समय में सिंगन देव ने अपने भाई भिल्लमदेव को देवल देवी को लेने के लिए भेजा।

देवल देवी को लेने के बाद रास्ते  में अलपखान के सैनिकों ने देवल देवी को पकड़ा और दिल्ही भेज दिया गया 
और देवलदेवी को सहजादा ख़िज़्र ख़ाँ के साथ शादी करवा दी गई।

आमिर खुसरो अपनी कृति "देवल देवी - व् - ख़िज़्र ख़ाँ" में ऐ बात लिखते हे. 

यह भी पढ़े : सोमनाथ मंदिर (Somnath temple)


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